अलग अलग रंग
तुम्हारी लिखीं कविताएं क्या हैं
जानते हो ...... नहीं न
तो सुनो
बिना पते की चिट्ठी
जो मुझ तक आ पहुँचीं मुझे ढूंढ कर
जैसे मैं ही उनका सही पता हूँ
उड़ती हुई पतंग जिसकी डोर का
एक सिरा तुम्हारे हाथ है
और दूसरा मेरे हाथ
जैसे तुमने फूंक मार कर
बाँसुरी में कोई राग छेड़ा
या हौले हौले तबले पर थाप दी हो
जिसके स्वर मेरे कानों से होते हुए
मन में समा गए
जैसे ढेर सारी तितलियों को
उड़ा दिया मेरी ओर
जो अपने रंगीन पंखों से
फड़फड़ा रही हैं
हर पल मेरे गिर्द .....
और मैं उन्हें हौले से उन्हें छूती हूँ
जैसे किसी चित्रकार ने तूलिका से
नए रंग फेर दिए मेरे मन पर
ऐसी कविताएं लिखीं तुमने
जो इस पत्थर में धड़कनें बो गईं
और अपनी संजीवनी से मुझे
नया जीवन दे गईं
मुझे नया जीवन दे गईं.......
पूनम अग्रवाल
🤫
30-Sep-2021 10:44 AM
नाइस...👌
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